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प्रभु यीशु मसीह के बाद मसीही जगत को प्रभावित करने वालों में प्रेरित पौलुस का नाम दूसरे क्रम पर आता है। इस बुलाहट और पदवी को पाने से पहले वह मसीही विश्वास और विश्वासियों का कट्टर विरोधी था पर प्रभु यीशु मसीह से दमिश्क के रास्ते पर एक ही मुलाकात ने उसे मसीह का सेवक बना दिया। लंबी और फलदायी सेवकाई के अंतिम पड़ाव में आकर पौलुस ने अपने शिष्यों तिमुथियुस और तितुस को पत्रियाँ लिखीं।
इन पत्रियों में पौलुस ने न केवल कुछ सामान्य निर्देश दिए हैं पर आत्मिक नेतृत्व के सिद्धांतों को अपने जीवन से दिखाया और समझाया है। यहाँ चरित्र, व्यक्तिगत जीवन, बुलाहट और कलीसिया से जुड़े कई अहम बातों को पौलुस ने बताया है। अपने शिष्यों को और हमें भी इन सिद्धांतों को पहले अपने जीवन में और फिर अन्यों के जीवन में लागू करने को सिखाया गया है। इसके साथ ही साथ इन पत्रियों में हम पौलुस के जीवन के अन्तिम दिनों का विस्तार से विवरण पा सकते हैं जिससे सेवा के प्रति उसके समर्पण, आत्मिक बोझ, दूसरों को तैयार करने की तीव्र इच्छा और प्रभु यीशु मसीह और अन्यों के प्रति प्रेम को हम गहराई से समझ सकते हैं।
लेखक के विषय में
डॉ पॉल थॉमस मैथ्युस राजस्थान पेंटिकॉस्टल चर्च के पासबान और फिलादेलफिया फेलोशिप चर्च ऑफ़ इंडिया के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं। 2014 में अपनी PhD की उपाधि लेने के बाद 2017 में आपने इंग्लैंड के बर्मिंघम विश्वविद्यालय से इवेंजेलिकल एंड केरिस्मेटिक स्टडीज़ में एक और उपाधि अर्जित की। डॉ पॉल अपने परिवार के साथ उदयपुर, राजस्थान में रहते हैं।
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